राजगढ़

विदेशी दासता की ओर बढ़ते कदम तथा विनाश से बचने का एकमात्र मार्ग आर्य गुरुकुल -संतराम

राजगढ़

 

राजगढ :- हमारी शिक्षा विदेशी, संस्कार विदेशी, वेशभूषा-भाषा विदेशी, खेल मनोरंजन के साधन विदेशी, चिकित्सा विदेशी, प्राय: सभी कानून व प्रशासनिक ढांचा विदेशी, मानसिकता विदेशी, खानपान विदेशी,हमारी राष्ट्रीय सम्पत्ति के अधिकांश लुटेरे ग्राहक विदेशी,विज्ञान व तकनीक विदेशी तथा संसार में एक मात्र देश, जिसका नाम भी दो,दो विदेशी तथा जो अपने ही इतिहास व संस्कृति पर प्रहार करता है। विदेशी निवेश, अनुदान व ऋण पर निर्भरता, अब तो रोग भी विदेशी,तथा उसके लिए सलाह इलाज दवाई भी विदेशी अंतरराष्ट्रीयकरण वा आधुनिकता के नाम पर प्रभावशाली राष्ट्रों की खुली दासता को स्वीकार करने की होड़ में अग्रणी रहने का प्रयास हमारा ।

यह विदेशी दासता आज सभी प्रबुद्धों, राजनैतिक दलों व सरकारों की पहचान बन गई है। हमारी बुद्धि को विदेशी चकाचौंध ने पूर्णतः हर लिया है, फिर भी हमारा भारत आत्मनिर्भर है? अपने देश का यह व इससे अधिक उपहास क्या होगा? 

मेरे आर्य श्रेष्ठ लोगों क्या आपकी आत्मा भी विदेशी दास बन गई है? यदि नहीं, तो आपकी आत्मा आपको क्यों नहीं धिक्कारती है ? जब कि हम जैसे सामान्य लोगों ने आधुनिक विज्ञान को एक करोड़ व  10 करोड़ का इनाम रख कर ज्ञान विज्ञान में अधूरा सिद्ध किया है ।  

आएँ और हमारा साथ दें, हम आपको वैदिक विज्ञान के द्वारा पूर्ण स्वाधीनता की ओर ले जाने के लिए कृतसंकल्प हैं। इसके लिए हमें आर्ष गुरुकुल को बढ़ावा देते हुए अपने बालक,बालिका को उससे ही शिक्षा सुसज्जित करना-कराना होगा तभी हम सारी समस्या से निवृत होकर विश्व गुरु की और भारत को बड़ा पाएंगे इस कदम में बढ़ते हुई मध्यप्रदेश में तीन जगह होशंगाबाद,बड़ा बेरसिया तथा इंदौर बालक गुरुकुल व एक बालिका शाजापुर के मोहन बडोदिया आर्षगुरुकुल खोले हैं जिसमें बच्चों का प्रवेश करवाये । अपने आपको व देश को बुलंदिया ऊंचाइयों पर ले जाएं उक्त जानकारी पतंजलि के जिला योग प्रचारक संतराम आर्य ने दी।
यही आशय विश्व के एकमात्र वेदिक वैज्ञानिक आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी का भी है ।