महाराष्ट्र में सरकार पर सस्पेंस कायम है। सोमवार सुबह से लगा रहा था कि राकांपा और कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना सरकार बना लेगी और शिवसैनिक को मुख्यमंत्री पद पर बैठा देखने का बाला साहब ठाकरे का सपना पूरा होने ही वाला है, लेकिन ताजा घटनाक्रम में ऐसा होता नहीं दिख रहा है। दिन में जब खबर आई कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के बीच फोन पर बात हुई है। इसके बाद लग रहा था कि शिवसेना सरकार बना ले जाएगी, लेकिन रात करीब 8 बजे जब कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कांग्रेस विचार कर रही है, तो पेंच फंस गया।
एनसीपी का रुख साफ रहा कि वह शिवसेना के साथ सरकार बना सकती है। अब गेंद कांग्रेस के पाले में थी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस ने समय पर फैसला नहीं लेकर शिवसेना के मंसूबों पर पानी फेर दिया। कांग्रेस को लगता है कि शिवसेना की सरकार को किसी भी तरह से समर्थन देना पार्टी के लिए दूसरे राज्यों में नुकसान हो सकता है।
आगे क्या हो सकता है
राज्यपाल ने राकांपा को सरकार बनाने का न्योता दिया है। यदि राकांपा इसे स्वीकार करती है और कांग्रेस से बात करती है तो भी संख्या बल जुटता नहीं दिख रहा है। दोनों के पास कुल 98 विधायक (54 रापांका और 44 कांग्रेस) हैं, जो बहुमत के आंकड़े 145 से बहुत कम है। यदि राकांपा भी सरकार नहीं बना पाई तो राष्ट्रपति शासन लग सकता है।
इससे पहले संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने मीडिया से फोन पर चर्चा में कहा कि राज्यपाल के पाल में गेंद हैं। वे चाहें तो तीसरी सबसे बड़ी पार्टी यानी एनसीपी को बुला सकते हैं, लेकिन 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में एनसीपी को मिली सीटों की संख्या यानी 54 सीट का आंकड़ा बहुत कम है। यह भी सही है कि कोई भी दल या गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश कर सकता है, लेकिन अब राज्यपाल को तय करना है कि किसी को सरकार बनाने का मौका दिया जाए या दूसरा विकल्प अपनााया जाए।
बता दें, महाराष्ट्र में 21 अक्टूबर को वोटिंग हुई थी और 24 अक्टूबर को नतीजे आए थे। चुनाव आयोग के मुताबिक, भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिली थीं। जबकि उसकी पार्टनर शिवसेना के खाते में 56 सीटें गई थीं। शरद पवार की पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए 54 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को 44 सीटों से संतोष करना पड़ा था। महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कम से कम 145 विधायकों को समर्थन जरूरी है।