निवाडी-गढ़कुंडार दुर्ग झांसी से दक्षिण पूर्व में पहाड़ों और घने जंगलों के बीच अपनी प्राचीनता और शालीनता लिए जिला निवाड़ी मध्य प्रदेश में स्थित है जुझौती प्रदेश (आधुनिक बुंदेलखंड) की प्रथम राजधानी गढ़कुंडार में स्वतंत्र हिंदू, खंगार राज्य की स्थापना महाराजा खेत सिंह खंगार ने सन 1182 में की थी ! खंगार राजवंश, शौर्य, बलिदान और त्याग के लिए विख्यात रहा ,गढ़कुंडार को प्रथम राजधानी बनाने का श्रेय महाराजा खेत सिंह को है
खंगार राज वंश 1182 से 1347 तक लगभग 165 वर्ष गढ़कुंडार में सत्तारूढ़ रहा,जुझारू संस्कृति का जनक खंगार राजवंश रहा जिसकी राजधानी गढ़कुंडार रही।
तेरहवीं शताब्दी का अंत निकट था महोबे में चंदेलो की कीर्ति का पताका नीचे हो चुकी थी जिसे आज बुंदेलखंड कहते हैं उस समय उसे जुझौती खंड कहते थे बेतवा सिंध और केंन नदी द्वारा सिंचित और विदीर्ण एक वृहद भाग पर कुडार के खंगार राजा हुरमत सिंह का राज्य था,,,,
जब संध्या समय पर पलोथर के नीचे बेतवा के दोनों किनारों पर शंख और घंटी तथा कुडार के गढ़ से खंगारों की तुरही बजा करती थी तब लगता था कि खंगार क्षत्रियो की इस वीर भूमि ओर उनके यश,का पताका फहर रहा,
गढ़कुंडार दुर्ग के प्रांगण में जौहर कुंड है जो एक ऐतिहासिक प्रमाण है सन 1347 में मोहम्मद बिन तुगलक दिल्ली के सुल्तान से युद्ध के पश्चात खंगार छत्राणियो एवं राजकुमारी केशर दें, ने अपने धर्म और सतीत्व की रक्षा के लिए अग्नि कुंड में अपने प्राणों की आहुति देकर जोहर किया लेकिन बादशाह के आधिपत्य में जाना स्वीकार नहीं किया।
प्रमाण के लिए सती स्तंभ लेख से।। सती।। संवंत 1313 अ.तिथो अ. केसर दे सती कियो। महाराजाधिराजा ने वादशाह से रन कियो। खंगार राजाओं ने राष्ट्र धर्म की रक्षा के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया लेकिन राष्ट्र की शान को कायम रखा ,राष्ट्र धर्म सर्वोपरि का नारा सर्वप्रथम गढ़कुंडार राजाओं ने दिया यहां धार्मिक कट्टरता व मातृभूमि के लिए सर्वोच्च प्रेम ही सब कुछ रहा गढ़कुंडार राज्य के निवासी स्वाभिमानी, परिश्रमी ,राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, वीर, त्यागी और सत्यप्रेमी थे अपनी सत्यता श्रेष्ठता और जाति पवित्रता बनाए रखने के लिए कटिबद्ध थे । सती और जोहर प्रथाओं का प्रचलन था गढ़कुंडार की भौगोलिक परिस्थितियां एवं वीर योद्धाओं ने यहां की इतिहास को और भी गौरवशाली बनाया विद्यार्मियो के आक्रमणों से हमेशा बचा कर रखा!
अंग्रेज इतिहासकारों ने लिखा है कि खंगार स्वतंत्र भूखंड के स्वतंत्र रक्षक थे गढ़कुंडार का दुर्ग अवैध दुर्ग था गढ़कुंडार राज्य तीन महा नदियों से घिरा था केन बेतवा और सिंध के बीच के भूभाग पर खंगार राजवंश 165 वर्ष 1182 से 1347 ईस्वी तक भली-भांति रहा गढ़कुंडार का इतिहास त्याग तपस्या और बलिदान का इतिहास रहा है आक्रमणकारी दुर्ग को अवैध समझकर विजय का सपना साकार ना कर सके !!खंगारों की खड़क से दुश्मनों के दिल दहल जाते थे खंगार काल भैरव, शिव काली मां,और गजानन माता की भक्त थे गढ़कुंडार में प्रमुख दर्शनीय स्थलों में हनुमान जी सिद्ध बाबा का स्थान मुरली मनोहर मंदिर नरसिंह मंदिर विशाला तोपखाना बावड़ी रानी का महल जौहर कुंड दीवाने आम दीवाने खास गिद्ध वासिनी माता मंदिर गजानन माता मंदिर इत्यादि गढ़कुंडार में महाराजा खेत सिंह खूब सिंह मान सिंह और अमर सिंह और अंतिम राजा बरदाई सिंह खंगार शासक रहे।
वर्तमान में महाराजा खेत सिंह खंगार जी की जयंती पर मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन निवाड़ी के सहयोग से तीन दिवसीय 27 28 एवं 29 दिसंबर गढ़ कुंडार महोत्सव मनाया जाता है जिसमें शासन की ओर से विभिन्न संस्कृतियों से ओतप्रोत सांस्कृतिक कार्यक्रम की मनोहारी प्रस्तुतियां मंच के माध्यम से की जाती है क्षेत्रीय कलाकारों के द्वारा भी विभिन्न संस्कृतियों से संबंधित क्षेत्रीय कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां की जाती है क्षेत्र के लोगों में समाज के लोगों में गढ़ कुंडार महोत्सव को लेकर महाराजा खेत सिंह जयंती के लिए बड़े खुशी एवं उत्साह का माहौल बना हुआ है शासन प्रशासन के द्वारा देश के कोने कोने से आने वाले लोगों के लिए बहुत अच्छी व्यवस्थाएं की जा रही है वही समाज के लोगों के द्वारा भोजन के लिए निशुल्क भंडारा किया जाता है