ज्योतिष

समयगति: आखिर क्यों बढ़ता जा रहा सत्ताधीशों और पत्रकारों के बीच टकराव/ आखिर क्या वजह है कि आज पत्रकारों की स्थिति दयनीय होती जा रही है।

ज्योतिष

*समयगति*

*आखिर क्यों बढ़ता जा रहा सत्ताधीशों और पत्रकारों के बीच टकराव*
*आखिर क्या वजह है कि आज पत्रकारों की स्थिति दयनीय होती जा रही है।*

*●माखन विजयवर्गीय*

भोपाल। देश भर में पत्रकारों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। इस विषय पर गहन मंथन करें तो कुछ हद तक समझ मे आता है कि सत्ता में हस्तक्षेप कि वजह से स्तिथियाँ बिगड़ती जा रही है। जब जब सत्ताधीशों को सत्ता के लिए बुद्धिजीवी की जरूरत होती है तब तब राष्ट्र का हवाला देकर सत्ता की चाह रखने वाले बुद्धिजीवियों के पास पहुंचते है एवं नए रास्ते की खोज की जाती है। लेकिन यह भी उतना ही सही है जब जब सत्ताधीशों की सत्ता में बुद्धिजीवियों की वजह से खलल पड़ता है। तब तब दमन भी शुरू होता है। 
सनातन काल से तत्कालीन राजा महाराजा ऋषि मुनियों की सहायता राजकाज में लेते रहे है। और ऋषिमुनि देश काल की मांग के अनुसार उन्हें सलाह मशवरा देते भी थे। लेकिन सत्ता के मद में धीरे धीरे ऋषियों को कुचला गया। जिससे आश्रमों में विकसित होने वाले विज्ञान, आयुध ज्ञान का ह्रास होता गया। और  सत्ता की परिभाषा बदलती गयी। धीरे धीरे देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ता गया। प्रजा और ऋषियों की 700 साल की अथक मेहनत के बाद देश तो आजाद हो गया। परंतु ऋषि परम्परा समाप्त हो गयी। गुरुकुल समाप्त होते गए। नैतिक शिक्षा पतन की और बढ़ती गयी। आजादी के समय के बाद सत्ता पर अंकुश के लिए पहचान बनी रही ऋषि परम्परा समाप्त हो गयी। परन्तु जन्म ले लिया पत्रकारिता ने , और यही लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ हमेशा से  सत्ताधीशों पर अंकुश लगाता रहा जिससे देश विकास शील होता गया। लेकिन अब फिर समय आया और अब चौथे स्तम्भ की बलि चढ़ने वाली है। विष्णु पुराण में लेख आता है कि सहस्त्रार्जुन ने सत्ता के मद में ऋषि जमदग्नि के पुत्र को अकारण लात मार दी थी। धर्म संसद में मामला उठाया गया। और धर्म संसद ने सहस्राजुन को गलत ठहराया तो उसने ऋषि परम्परा को कुचलना शुरू कर दिया। यही स्थिति आज पत्रकारों और सत्ता के बीच की है। यह कोई नया नही है। कहा गया है कि शक्ति यदि बुद्धि के अधीन रहे तो ऐसे कार्य कर सकते हैं जो इतिहास में सदा जीवित रहते हैं। शक्ति पर यदि ज्ञान और बुद्धि का अंकुश रहे, तो निर्माण की एक अनूठी परम्परा जन्म लेती है। परन्तु यदि शक्ति के मद से बुद्धि और ज्ञान का अंकुश हट जाए या शक्ति बुद्धि के वश से बाहर हो जाए तो अराजकता और विनाश के द्वार खुल जाते हैं। बाहुबल यदि बुद्धि को अपना विरोधी मान ले तो कई पीढियां बर्बाद हो जाती है। बुद्धिजीवियों का दमन मानव इतिहास में सबसे बड़ी दुर्घटना होती है। जब जब सत्ताधारी वर्ग ने बुद्धिजीवियों का दमन किया है। तब तब समय कराह उठता है । और फिर प्रारम्भ होता है राजनीति और अपराध का दस्तूर, शासक अपने प्रतिद्वंदियों को नीचा दिखाने के लिए अपराधियों से सहायता लेने लगता है। और फिर हो जाता है राजनीति का अपराधीकरण, राजनीति में अपराध का प्रवेश समाज के लिए हानिकारक है। राष्ट्र के लिए हानिकारक है।  और फिर शुरू होता है अत्याचार, और अत्याचारी वही होता है जो भीतर से भयभीत होता है। भीतर से स्वयं को असुरक्षित पाता है।  जिस प्रकार एक मदोउन्मत्त गज, अपने ऊपर बैठे महावत और अंकुश को उतार फेंकना चाहता है। उसी प्रकार सत्ताधारी स्वयं पर कोई रोक कोई टोक सहन नही करना चाहता। आज यही स्थिति पत्रकारों की है। देश भर में भले ही पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग उठती रही है। परंतु स्वार्थवश यह न बन पाया और न ही बनेगा। आज उत्तरप्रदेश , कर्नाटक सहित कई जगह पत्रकारों की हत्याएं हो रही है। मध्यप्रदेश भी इस दमन से अछूता नही है। पत्रकारों को धमकियां मिलना आम बात है। कई मामलों में तो यह भी देखा गया कि पत्रकारों को झूँठा फंसाकर उनका दमन किया गया। जेल की सलाखों के भीतर तक जाना पड़ा। 
अतः बुद्धिजीवियों से निवेदन है कि अब बुद्धि का प्रयोग करें एवं सत्ता से दूर रहकर नई संस्कृति को जन्म दें। समानांतर नैतिक शिक्षा पद्धति, गुरुकुल शिक्षा पद्धति की शुरुआत की जाए। ताकि नए आविष्कार एवं नई सृष्टि हो सके। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।