कोतवाली क्षेत्र के दुलहीपुर में स्थित आलमबाग से जमील उस्ताद का निकलने वाला पैक रिसाला जो हर साल की तरह इस साल भी मुहर्रम की 7 तारीख को उनके आवास से निकल कर शकूर का भट्टा, भिसौडी, कुंडा कलां, मलोखर, शक्रराबाद, सतपोखरी, मुगलसराय, महावलपुर, बगही, मिलकियाना, करवत तथा अन्य सभी गाँव का भ्रमण करते हुए मुहर्रम की 9 तारीख को रात्रि 11 बजे चंदौली से पैदल चल कर वाराणसी सरैयां स्थित इमाम बारगाह में पहुंचा ।वहाँ पहुँच कर लोगों ने फातिहा पढ़ कर अपने तथा देश की उन्नति के लिए दुआ करने के उपरांत यह पैक रिसाला की पद यात्रा समाप्त हो गई। बताते चलें कि यह पद यात्रा व जियारत कासिलसिला हर साल मुहर्रम की 7 तारीख से 9 मुहर्रम की आधी रात तक चलता रहता है। जिसमें गुलाम मुस्तफा व इकबाल अहमद ने कर्बला के वाकिये के ऊपर नज़्म*कहती थी बिलख कर एक दुखिया**मुझसे मेरा असगर छूट गया*एवं *कर्बो बला का वो मंज़र**दिल है लरज़ता सुन सुन कर*पढ़ा इमाम हुसैन की याद में मन्नत मुराद की यह पदयात्रा जियारत लगभग 30 वर्षों से चला आ रही है। वर्तमान में जमील उस्ताद की मृत्यु के उपरांत उनके पुत्र सगीरुद्दीन उर्फ बाबू उस्ताद यह जिम्मेदारी निभाते हुए इस पैक रिसाला को निकालते हैं। जिसमें मुख्य रूप से सगीरुद्दीन उर्फ बाबू उस्ताद, इकबाल अहमद, अब्दुल रशीद, नसीर अहमद, मुस्तफा उर्फ बाबू भाई, यासीन अहमद, रमजान अली, गुलाम मुस्तफा व अन्य आदि लोगों ने पदयात्रा व जियारत करते हुए वाराणसी लाट सरैया जाकर इस पैक रिसाला का समापन किया।
सूर्य प्रकाश सिंह की रिपोर्ट