भिंड

तेरा कर्ज है यहां पर जो सांसे ले रहे हम - सलिल सुमन

भिंड

तेरा कर्ज है यहां पर जो सांसे ले रहे हम ।
ये पर्यावरण हमारा क्यों बेसुद सो रहे हम।।
खोदे पहाड़ तुमने ना छोड़ी कोई नदियां।
रोते है आँसू खूनी कितने मतलबी हैं हम।।
कोई नही खिवैया वो सब पेड़ काट डाले।
पंथी को ना है छाया ना गर्मी हुई है कम।।
सब औऱ पत्थर फैले दिन भी हुआ कठोर।
पैरो पर है कुल्हाड़ी ना खुद पे किया रहम।।

- सलिल सुमन