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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस विशेष: योग' का क्या है मतलब और हजारों साल पहले किसने की इसकी शुरुआत, जानिए

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इंटरनेशनल योगा डे (21 जून) की अब पूरी दुनिया में धूम है। धीर-धीरे हर कोई अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए योग का महत्व समझ रहा है। पूरी दुनिया का भले ही पिछले कुछ दशकों से योग से परिचय हुआ है लेकिन भारत में इसकी परंपरा हजारों वर्षों से रही है।

हालांकि, यह भी सही है कि बीच के कुछ कालखंड ऐसे रहे जहां भारत में ही योग को भूलाया जाने लगा था। अब इसे लेकर काफी बदलाव आया है। योग और भारत के इसमें योगदान को दुनिया समझने लगी है। आईए, योगा इंटरनेशनल डे के इस मौके पर हम आपको योग के पूरे इतिहास के बारे में बताते हैं और साथ में जानते हैं कि भारत में इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई।

 

International Yoga Day: योग के मायने और इसका महत्व

योग- एक ऐसी कला जिसमें मन और शरीर में सामंजस्य बैठाने का अभ्यास किया जाता है। इसे आप एक तरह का विज्ञान भी कह सकते हैं जो स्वस्थ्य जीवन के लिए जरूरी है। 'योग' शब्द दरअसल एक संस्कृत के 'युज' शब्द से आया है जिसका मतलब 'जोड़ना' होता है। योग के जानकारों के मुताबिक इसका अभ्यास दरअसल मन और शरीर, व्यक्ति और प्रकृति के जुड़ाव की कोशिश है। योग का मकसद जिंदगी से जुड़े हर क्षेत्र को आसान बनाना और स्वस्थ्य जीवन की ओर ले जाना है। योग का सटीक इतिहास नहीं मिलता लेकिन हिंदू धर्मग्रंथों, वेदों और यहां तक कि सिंधू घाटी सभ्यता से जुड़ी मिली कलाकृतियों में भी ऐसे प्रमाण हैं जो योग के उस समय भी मौजूदगी को साबित करते हैं।

योग: इतिहास और कैसे ये पहुंचा दुनिया के कोने-कोने में

हिंदू मान्यताओं के अनुसार योग की शुरुआत का इतिहास हजारों साल पुराना है। योग से जुड़े कुछ जानकार तो भगवान शिव को पहले योगी या आदियोगी मानते हैं। शिव को पहला गुरु या आदि गुरु भी कहा जाता हैं। हजारों साल पहले हिमालय पर्वत के बीच कांतिसरोवर झील के किनारे आदियोगी ने योग से जुड़े इस ज्ञान को सप्तऋषियों को बताया। इसके बाद इन ऋषियों ने इसे दुनिया के विभिन्न जगहों में पहुंचाया। सप्तऋषियों में से एक अगस्तय ऋषि ने पूरे भारतीय महाद्वीप का दौरा किया और इसे भारतीय जनमानस की इससे पहचान कराई।

महर्षि पतंजलि का है विशेष योगदान

हिंदू धर्मग्रंथों मसलन, रामायण, महाभारत, उपनिषद में तो योग का जिक्र कई जगहों पर मिलता है। साथ ही बौद्ध और जैन परंपराओं में भी इसकी बात की गई है। हालांकि, योग के सबसे अधिक प्रसार-प्रसार का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है। महर्षि पतंजलि ने योग की प्रक्रिया को व्यवस्थित किया और इसके महत्व को व्यापक तौर पर दूसरे ऋषियों और योग गुरुओं को समझाया। महर्षि पतंजलि ने योग के 195 सूत्रों को प्रतिपादित किया, जो योग दर्शन के स्तंभ माने गए। साथ ही महर्षि ने धर्म से इतर योग की महिमा को बताया, जो स्वस्थ जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। 

माना जाता है कि 500 ईसा पूर्व और 800 ईसा पूर्व के बीच का काल योग के लिए सबसे बेहतर समय रहा जब इस ज्ञान ने व्यापक विस्तार हासिल किया। वहीं, आधुनिक काल में 1700 से लेकर 1900 के बीच रामना महर्षि, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंदा, स्वामी विवेकानंद जैसे दिग्गजों ने इसे विस्तार दिया।