त्योहार विशेष

भय मुक्त होने के लिए छठवें दिन करें बृज मंडल की अधिष्ठात्री देवी कात्यायनी की पूजा

त्योहार विशेष

नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्यों को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी के रूप में मां दुर्गा की पूजा का बहुत महत्व है। योगियों और साधकों द्वारा इस दिन पर आज्ञा चक्र पर तपस्या की जाती है। इस दिन पर पूजा करने पर मां को मानव के प्रस्ताव से सब कुछ मिल जाता है और वह अपने भक्त को आशीर्वाद देती हैं। लाल और सफेद रंग के वस्त्र इस दिन पहनने के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

पूजन विधि

 

कंडे (गाय के गोबर के उपले) जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा अर्पित करें। नवरात्र के छठे दिन हवन में मां कात्‍यायनी की इन मंत्रों के उच्‍चारण के साथ पूजा करें।

छठे दिन हवन में मां कात्‍यायनी के इस मंत्र का उच्‍चारण करें - ह्लीं श्रीं कात्‍यायन्‍यै स्‍वाहा।।

 

 

ब्रज की गोपियों ने भी की थी मां कात्यायनी की पूजा

 

नवरात्रि का छठवां दिन मां कात्यायनी को समर्पित है। मां कात्यायनी दुर्गा मां का छठवां अवतार हैं। एक बार जब ऋषि कत्य ने मां दुर्गा से उनके घर पुत्री के जन्म के रूप में उनके स्वरूप को मांगा, तो उन्होंने यह वर दिया। जब मां दुर्गा ने ऋषि कत्य के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। ऋषि कत्य के यहां जन्म लेने के कारण उनको मां कात्यायनी कहा जाता है।

 

 

मां कात्यायनी को त्रिदेव शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी ने शक्तियां प्रदान की हैं। मां कात्यायनी त्रिनेत्र धारी हैं। वह अपने हाथ में कमल का फूल और तलवार लिए हुए हैं। नवरात्रि के छठवें दिन मां कात्यायनी का उपवास रख पूजन किया जाता है। मान्यता है कि जिन जातकों का विवाह अधर में हो, यदि वे मां कात्यायनी की आराधना करते हैं, तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

 

जो भक्त मां की आराधना पूरी श्रद्धा भक्ति से करते हैं उन्हें मां स्वास्थ्य और समृद्धि का वर देती हैं। मां कात्यायनी की पूजा करने से भक्तों को रोगों से लड़ने की शक्ति भी मिलती है और वह सभी तरह के भय से मुक्त हो जाते हैं।

 

 

मां कात्यायनी का स्वरूप

 

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।

 

 

मां कात्‍यायनी की कहानी

 

महर्षि कात्यायन मां दुर्गा की उपासना में हमेशा लीन रहते थे। उन्होंने कई वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी मां दुर्गा उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। मां दुर्गा ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।

 

 

जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं। इसीलिए कात्यायनी मां को महर्षि कात्यायन की पुत्री माना गया है।

 

ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं। मां कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।