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शरद पूर्णिमा 2019: जानिए कब है शरद पूर्णिमा, क्या है महत्व और शुभ मुहूर्त

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से निपुण होता है और इससे निकलने वाली किरणें इस रात्रि में अमृत बरसाती हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को दूध की खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखी जाती है। मान्यता है कि चंद्रमा की किरणें खीर में पड़ने से यह अमृत समान गुणकारी और लाभकारी हो जाती हैं। आज के दिन पवित्र गंगा जी का जल भरने का रिवाज है। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार इस दिन गंगाजल में पारा और गंधक की भरपूर मात्रा एक साथ गंगाजल में बहकर आती है। इस जल से सभी चर्मरोग समाप्त हो जाते है। 

गंगाजल में पारा और गंधक की बराबरी की मात्रा की वजह से गंगाजल में फिजो वायरस उतपन्न होता है जिसकी वजह से गंगाजल कभी खराब नही होता है। 

इस दिन का पौराणिक महत्व
इसी दिन भगवान कृष्ण महारास रचना प्रारंभ करते है। देवीभागवत महापुराण में कहा गया है कि, गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने आज के दिन चंद्र को महारास का संकेत दिया था। चंद्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया और उन्हीं किरणों ने भगवान कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी। फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी महारास में समाहित हो गए। कृष्ण की वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मों में लीन सभी गोपियां अपना घर-बार छोड़कर भागती हुई वहां आ पहुचीं। कृष्ण और गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देखकर चंद्रमा ने अपनी सोममय किरणों से अमृत वर्षा आरंभ कर दी, जिसमें भीगकर गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुई और भगवान कृष्ण के अमर प्रेम की भागीदार बनी।

शरद पूर्णिमा कब है?
शरद पूर्णिमा का व्रत 13 अक्टूबर शुक्रवार को रखा जाएगा।

शरद पूर्णिमा व्रत मुहूर्त 
पूर्णिमा आरंभ 13 अक्टूबर को 00:38:45 से
पूर्णिमा समाप्त 14 अक्टूबर 2019 को 02:39:58 पर