लोकसभा चुनाव 2019

गृहमंत्री अमित शाह : जानिए शेयर ब्रोकर से सत्ता के शिखर तक का सफर

लोकसभा चुनाव 2019

शतरंज खेलने, क्रिकेट देखने एवं संगीत में गहरी रुचि रखने वाले भाजपा के ‘चाणक्य’ कहे जाने वाले अमित शाह ने राज्य दर राज्य भाजपा की सफलता की गाथा लिखते हुए इस बार लोकसभा में पार्टी के सदस्यों की संख्या 303 करने में महती भूमिका निभाई है। बीजेपी पार्टी को आगे लाने में मोदी लहर के साथ-साथ अमित शाह का भी अहम योगदान है। राजनीति में यह जोड़ी जय और वीरू के नाम से फेमस है। शाह को इस साल ग्रह मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, ओडिशा और दक्षिण भारत में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन के लिए भाजपा अध्यक्ष शाह की सफल रणनीति को श्रेय दे रहे पॉलीटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि विचारधारा की दृढ़ता, असीमित कल्पनाशीलता और वास्तविक राजनीतिक लचीलेपन का शानदार समन्वय कर शाह ने चुनावी समर में भाजपा की शानदार जीत का मार्ग प्रशस्त किया। शाह ने बिहार और महाराष्ट्र में न केवल राजग के घटक दलों के साथ गठबंधन को लेकर लचीला रुख अपनाया बल्कि स्थानीय स्तर पर प्रतिद्वन्द्वी दलों के वोट बैंक को भी अपनी पार्टी के पाले में लाने की सफल रणनीति बनाई। अगर आपके पसंदीदा नेता अमित शाह हैं तो आपको उनके बारे में जानना जरूरी हैं। यहां हम आपको शाह के बारे में कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जिनके बारे में अंजान हैं। आइए डालते हैं शेयर ब्रोकर और शतरंज खिलाड़ी से लेकर राजनीति के शहंशाह अमित शाह के अब तक के सफर पर एक नजर। (All Pics- Amit Shah Facebook)

बतौर बीजेपी प्रेसीडेंट रहते हुए शाह ने तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में भी गठबंधन किया और इसी वजह के चलते चुनावों में पूर्वोत्तर में गठबंधन के परिणाम स्पष्ट रूप से सामने आए हैं। भाजपा की जीत के साथ ही किसी गैर कांग्रेसी सरकार को लगातार दूसरी बार केन्द्र की सत्ता में लाने के प्रमुख सूत्रधार शाह ने बूथ से लेकर चुनाव मैदान तक प्रबंधन और प्रचार की ऐसी सधी हुई बिसात बिछाई कि मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ी भी मात खा गए।

राजनीति में माहिर रणनीतिकार शाह ने 'पंचायत से लेकर संसद' तक भाजपा को सत्ता में लाने के सपने को साकार करने की दिशा में काम किया। जुलाई 2014 में भाजपा अध्यक्ष का पदभार संभालने के बाद भाजपा के विस्तार के लिये उन्होंने पूरे देश का दौरा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं को जी-जान से जुट जाने का संदेश दिया।

शाह ने पहली बार 1991 के लोकसभा चुनाव में गांधीनगर में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का चुनाव प्रबंधन संभाला था। लेकिन, उनके बूथ प्रबंधन का करिश्मा 1995 के उपचुनाव में नजर आया, जब साबरमती विधानसभा सीट पर तत्कालीन उप मुख्यमंत्री नरहरि अमीन के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अधिवक्ता यतिन ओझा का चुनाव प्रबंधन उन्हें सौंपा गया। खुद यतिन का कहना है कि शाह को राजनीति के सिवा और कुछ नहीं दिखता।

शाह को 2019 के लोकसभा चुनावों में गांधी नगर सीट से जबरदस्त 5.50 लाख वोट मिले हैं। उन्हें गांधी नगर से जनता का ऐसा प्यार मिला कि उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी की जीत का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। बता दें कि इस सीट से आडवाणी भी चुनाव लड़ चुके हैं।

राजनीति में आने से पहले अमित शाह सीनियर स्टॉक मार्कट इनवेस्टर हुआ करते थे। जैसे ही शाह का संपर्क मोदी से हुआ तो वह राजनीति के शंहशाह बन गए और अब उन्हें बीजेपी का चांणक्य कहा जाने लगा।

शतरंज खेलने से लेकर क्रिकेट देखने एवं संगीत में भी गहरी रुचि रखने वाले 54 साल के शाह पारिवारिक और सामाजिक मेल-मिलाप में बहुत कम वक्त जाया करते हैं। संगठन और प्रबंधन के माहिर खिलाड़ी शाह ने पहली बार सरखेज से 1997 के विधानसभा उपचुनाव में किस्मत आजमायी और 2012 तक लगातार पांच बार वहां से विधायक चुने गये। सरखेज की जीत ने उन्हें गुजरात में युवा और तेजतर्रार नेता के रूप में स्थापित किया और वह आगे बढ़ते गए।

2010 में सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर मामले में शाह जेल की सलाखों के पीछे भी जा चुके हैं। बाद में उन्हें गुजरात से दूर जाने की शर्त पर बेल मिली थी। इसके चार साल बाद ही शाह बीजेपी के प्रेसीडेंट बन गए। अब वह राजनीति में एक ऐसे खिलाड़ी बन गए हैं जिसे पराजित करना शायद किसी के बस की बात नहीं है।

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नरेंद्र मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद शाह और अधिक मजबूती से उभरे। 2003 से 2010 तक गुजरात सरकार की कैबिनेट में उन्होंने गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला। जब नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय राजनीतिक पटल पर आए तो उनके सबसे करीबी माने जाने वाले अमित शाह भी देश में भाजपा के प्रचार प्रसार में जुट गए। लिहाजा अब वह केंद्रीय मंत्री बन गए हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव में शाह ने बतौर प्रेसीडेंट रहते हुए देश में करीब 500 चुनाव समितियों का गठन किया और करीब 7000 नेताओं को तैनात किया था। उन्होंने पार्टी के चुनाव अभियान में ऐसी 120 सीटों पर खास ध्यान दिया जहां भाजपा पहले चुनाव नहीं जीत पायी थी। उन्होंने पार्टी का अभियान चलाने के लिए 3000 पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं को तैनात किया और नतीजा, भाजपा के खाते में 303 सीटों के रूप में सामने आया।