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कुंठित बदजबान नेताओं के ओछे बोल, आखिर क्या है मंशा

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राजनीति का गिरता स्तर कहें या फिर नेताओं के धर्मजाति से भरे पूर्वाग्रह. जिस के चलते हर पार्टी के नेता कुंठित बदजबानी कर सारी नैतिकता लांघ रहे हैं. नेताओं के इन ओछे बोलों पर अंकुश जरूरी है.
घटिया और छिछोरी राजनीति का यह वह दौर है जिस में बदजबान नेताओं के मुंह में जो आ रहा है वे उसे बोले जा रहे हैं. बात कम हैरत की नहीं कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ऐसा ज्यादा हो रहा है. भाजपा नेता भी दूसरे नेताओं से बदजबानी के मामले में उन्नीस नहीं हैं. फर्क भाषा, स्तर और घटना का नजर आता है. यह तय कर पाना वाकई मुश्किल काम है कि बदजबानी के मामले में किस पार्टी के नेता भारी और किस पार्टी के कमजोर पड़ते हैं, ऐसी बेहूदी बयानबाजियां करने के पीछे उन की मंशा क्या रहती है.

राजनीति से दूर दूर तक सरोकार न रखने वाले राजीव गांधी अचानक आपातकालीन स्थिति के चलते प्रधानमंत्री बनाए गए थे लेकिन पढ़े लिखे ओर समझदार होने का उन्होंने बखूबी दायित्व निभाया , पंजाब को आतंकवाद मुक्त किया, कश्मीर में शांति लाए, देश मे इलेक्ट्रॉनिक क्रांति लाने वाले उच्च स्तर पर ले जाने वाले राजीव गांधी पहले से सूचना होने के बावजूद मंच तक गए और लिट्टे के विरोध में बोले जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए गोलियों के शिकार हो गए लेकिन राजनीति के स्तर को नही गिरने दिया। और आज उन्ही के नाम पर मोदी जी जिस स्तर की राजनीति कर रहे है उस पर पूरे देश मे छिछालेदारी हो रही है . इस भाषण के बाद भाजपा का स्तर लगातार गिरा है।

खतरनाक है मंशा

बयानवीर नेताओं की एक मंशा मुद्दे की बातों से लोगों का ध्यान बंटाने और हटाने की भी रहती है. मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी को नीच कहा और जवाबी हमले में मोदी ने खुद को छोटी जाति का स्वीकारते बड़े काम करने की बात कही तो फिर आखिरी चरण के मतदान तक गुजरात में विकास की बात नहीं हुई. सारी बात जाति तक सिमट कर रह गई.

विदेश सेवा में ढाई दशक गुजार चुके मणिशंकर अय्यर और कट्टर हिंदूवादी नेता साक्षी महाराज में कोई खास फर्क नहीं है. दोनों ही कुंठित हैं और मुद्दे की बात से कतराते हैं, इसलिए अपनीअपनी बौद्धिक क्षमता और शिक्षा के हिसाब से बयान देते रहते हैं.

दरअसल, ऐसी बेतुकी और बेहूदी बातों को मीडिया हाथोंहाथ लेते सुर्खियां बना देता है, जो आम लोगों का मनोरंजन तो करती है लेकिन इस से धर्म व जाति के अलावा महिलाओं के अपमान की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है, इस से वह कोई सरोकार नहीं रखता.

लोकतंत्र में बोलने की आजादी का बेजा फायदा सभी दलों के नेता कैसे कैसे उठा रहे हैं, यह पुराने और हालिया बयानों से उजागर हो रहा है जो लोकतंत्र के लिए ही चिंता की बात है क्योंकि ऐसे नेता कोई आदर्श नहीं गढ़ते.

कई दफा जनता की वाहवाही लूटने के लिए भी नेता ऐसे ऊटपटांग बयान दे डालते हैं जिन से उन पर तरस आने लगता है. पिछले दिनों मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा में कहा की "ए रे पिट्ठु कलेक्टर" यह स्तर हीन भाषा है। कोई व्यक्ति 13 साल मुख्यमंत्री रहा और उसे यह भाषा कैसे शोभा दे सकती है?

धीरगंभीर माने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान की जबान भी फिसली तो लगने लगा कि अपनी गलतियां और कमजोरियां ढकने के लिए भी बेतुके बयान दिए जाते हैं. इसी तर्ज पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने भी अपनी पार्टी के एजेंडे को उजागर करते कहा था कि जो गाय की हत्या करेगा उसे फांसी पर लटका दिया जाएगा.

यह धार्मिक उत्तेजनाभर थी, वरना छत्तीसगढ़ में गायों की बदहाली के जिम्मेदार भाजपा नेताओं की करतूतें आएदिन उजागर होती रहती हैं. लेकिन जब मकसद और मंशा कुछ और हो तो कौन ऐसे नेताओं की जबान पर लगाम लगाएगा जो जनहित की और तुक की बातें करने से कतराते हैं जबकि कानून, लोकतंत्र और संविधान को खुलेआम धता बताते बयानबाजी करते रहते हैं.
हम तो यही कहेंगे कि सत्ता के लिए राजनीति का स्तर जितना गिरा है उससे सम्पूर्ण विश्व पटल पर भारत की साख खराब हुई है।
शुचिता ओर संस्कार की बात करने वाले संस्कार विहीन दिखाई देने लगे है.