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वनराज शेर: लेखिका- निरुपा उपाध्याय

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वनराज शेर
लेखिका- निरुपा उपाध्याय 
किसी वन में एक शेर रहता था। लोमड़ी उसकी महामंत्री और बंदर उसका गुप्त चर था। सभी पशु -पक्षी चैन से समय व्यतीत कर रहे थे। एक दिन गुप्तचर बंदर राजा शेर के पास पहुंचकर बोला -महाराज जंगल के मुहाने पर कुछ मानव आए हैं। यह सुनकर शेर ने महामंत्री लोमड़ी और प्रबुद्ध जन भालू ,बंदर आदि से मंत्रणा कर निश्चित किया कि कुछ समय के उपरांत इस वन से प्रस्थान किया जाएगा। सभी पशु -पक्षी तैयारी कर ले ।वर्ष पूरा होते-होते बंदर ने आकर पुनः सूचना दी कि मानव ने कुछ मकान तैयार कर लिए हैं और 2-4 मानव परिवार इन मकानों में रहने भी आ गए हैं ।तब राजा ने विदाई समारोह रख उसके उपरांत प्रस्थान की घोषणा की।
 विदाई समारोह में सभी जानवर आपस में मिले, एक -दूसरे का धन्यवाद किया, पुरानी स्मृतियां जीवंत कर अश्रु बहाए और एक -दूसरे को उपहार प्रदान कर वन से पलायन कर गए ,किंतु बंदर नहीं गया ,जाते हुए राजा शेर ने बंदर से इसका कारण पूछा तो बंदर ने जवाब दिया -महाराज !मानव हनुमान जी का एक विशाल मंदिर भी बना रहे हैं।उनकी प्रतिमा की स्थापना के पूर्व से ही मेरे भोजन का इंतजाम वहां हो जाता है,तो भला मुझे यह जगह छोड़कर जंगल-जंगल भटकने की क्या जरूरत ?अतः मैं यहां मजे से अपना जीवन यापन करूंगा,पर अपने गुप्त चर होने का कर्तव्य निभाने में सजग रहूंगा और सूचना लेकर आपकी सेवा में आता रहूंगा।जानवरों के पलायन का यह क्रम सालों- साल चलता रहा। जानवर अपने लिए वन और यथोचित स्थान ढूंढते हुए भटक -भटक कर जीवन व्यतीत करते रहे । एक बार एक छोटे से वन में  राजा शेर अपनी सभा में बैठा हुआ था। तभी बंदर आया और उसने कहा कि इस जंगल के मुहाने पर कुछ मानव बड़ी-बड़ी मशीनें लेकर आए हैं।वहां मल्टी, जिम, स्पा, प्ले जोन, स्विमिंग पूल आदि सभी का निर्माण करेगा। वन के तालाब से पाइप लाइन डालने का कार्य सबसे पहले प्रारंभ होने जा रहा है।यह सुनकर सभी जानवरों की आंखें नम हो गई।राजा शेर ने पुनःआदेश दिया-हम आज इसी समय ही इस जंगल से रवाना होंगे।इस बार कोई विदाई-समारोह नहीं होगा। यह सुनकर जंगल में हड़कंप मच गया,जो जहां था ,वहीं से जंगल छोड़कर भागने लगा।यथा क्रम सालों-साल यही चलता रहा ।प्रत्येक 4-6 माह में पशु-पक्षियों को नए जंगल में नया आसरा ढूंढना होता था।नियति मानकर अब उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया था।
सैकड़ों वर्ष न व्यतीत होते गए और वन कम होते रहे। 
परिणाम स्वरूप बेवक्त  की बरसाते,तूफान,जलजले ,सुनामी, अकाल आते रहे,किंतु मानव नहीं रुका।वह हवाई-यात्रा करते-करते चांद और फिर मंगल पर भी पहुंच गया।धरती पर उसने एकाधिकार कर समस्त जीव-जंतु को बेदखल कर अब चांद आदि ग्रह को भी हड़पने की योजना बना डाली। वह निर्बाध गति से निरंतर बढ़ता चला जा रहा था,तो दूसरी ओर भोजन एवं जल के लिए तरसते वन्य प्राणी जीवन बचाने के लिए तो कभी जीवन व्यतीत करने के लिए इस वन से उस वन तक भटकते फिर रहे थे।कभी उसकी जान मानव अपने भोजन के लिए ले लेता,तो कभी वह भूख-प्यास से व्याकुल होकर मानव बस्ती में भूलवश पहुंच जाता तो मारा जाता। निराश और भय से परिपूर्ण जीवन के कारण कई प्रजातियों ने दम तोड़ दिया।मानव आगे बढ़ता रहा और वन्य प्राणी उसे जगह देने के लिए पीछे सरकते रहे।
एक सुबह विचार मग्न शेर को ख्याल आया कि बहुत दिन व्यतीत हो गए,बंदर कोई समाचार लेकर नहीं आया।अपनी इस मंशा के समाधान के लिए उसने तुरंत सभा बुलाई और सभी जानवरों से कहा कि बंदर बहुत दिनों से कोई संदेश लेकर नहीं आया है।इस वन में रहते हुए हमें अधिक दिन हो गए हैं।इससे पहले मानव ने हमें किसी भी वन में इतने समय नहीं रहने दिया है।मुझे संदेह है कि बंदर किसी मुसीबत में फंस गया होगा।तभी अब तक सूचना लेकर नहीं आया है।अतः हमें सतर्कता बरतते हुए,इस वन को अब छोड़ देना चाहिए।यह सुनकर सभी जानवर दुखी हो गए। तभी ऊंचे पेड़ पर बैठा गिद्ध  एकाएक चिल्लाया, महाराज! महाराज! दूर से बंदर आता दिखाई दे रहा है। यह सुनकर सभी जानवर चहक उठे,किंतु जब देर तक बंदर नहीं पहुंचा तो शेर ने गिद्ध से पूछा- यदि बंदर सच में आ रहा है तो अब तक पहुंचा क्यों नहीं? वह तो बहुत फुर्तीला है,उसे इतना समय नहीं लगता!गिद्ध ने देख कर कहा महाराज वह आ तो इसी ओर रहा है,पर उसे देख कर लग रहा है कि वह चल पाने में असमर्थ है,इसलिए जैसे-तैसे चलकर यहां पहुंचने का प्रयास कर रहा है!यह सुनकर जानवर चिंतातुर होकर बंदर की प्रतीक्षा करने लगे।
हांफता-कांपता, लड़खड़ाता वह बंदर सभा में पहुंचते ही जैसे-तैसे बोल पाया कि-महाराज! मैंने बहुत दिनों से कुछ खाया नहीं है।मुझे पहले भोजन कराइए। यह सुनकर राजा ने आदेश दिया,तुरंत भोजन का प्रबंध हो गया।वानर ने भोजन किया तो उसकी जान में जान आई,बहुत सारे फल खाकर उसने पानी पिया और दो क्षण आराम से बैठ कर बोला-प्रणाम महाराज! यह सुनकर शेर बोला-वानर तुम्हारी ऐसी दशा कैसे हो गई?तुमने तो कहा था कि मंदिरों से तुम्हें पर्याप्त भोजन मिल जाता है।फिर तुम इतने दिनों से भूखे क्यों हो? बंदर बोला-महाराज मंदिर बंद हो गए।यह सुनकर सभी सभाजन आश्चर्यचकित होकर बोले-क्या कहा?मंदिर बंद हो गए।बंदर बोला- हां मंदिर बंद हो गए।शेर ने कहा- पर ऐसा कैसे हो गया?यह तो चिंता का विषय है।मानव के रहते मंदिर बंद हो गए।अब वे देव दर्शन को कहां जाएंगे?यह सुनकर बंदर ने बहुत दुखी होकर कहा-वनराज अब मानव मंदिर में नहीं आ सकते,इसलिए मंदिर बंद कर दिए गए हैं।आतुर होकर भालू बोला-बंदर पर ऐसा क्या हो गया?बंदर बोला-महाराज एक  जीवाणु इस धरती पर अवतरित हुआ है।मानव उसके प्रहार को सहने योग्य नहीं है।इसलिए वह घरों में कैद हो गया है।वैसे ही जैसे कभी हम सब जीव-जंतु सर्कस में कैद हुआ करते थे।अब पूरे देश भर में मानव बस घर के अंदर ही रह सकता है।यदि वह घर में न रह कर बाहर निकले तो घर से निकलते ही यह जीवाणु उसे निगल लेता है।
यह सुनते ही चतुर महामंत्री लोमड़ी ने कहा-महाराज यह जीवाणु तो लगता है,हमारा उद्धार करने के लिए अवतरित हुआ है।लोमड़ी की बात का समर्थन अन्य जानवरों ने भी किया।शेर ने बंदर की ओर देखकर कहा-वानर आज तुम बहुत अच्छी खबर लाए हो।मैं बहुत प्रसन्न हूं,पर मुझे अपने विभिन्न बंधु-बांधव की भी चिंता हो रही है,काश यह महान अवतारी जीवाणु हमारी तरह हमारे अन्य बंधुओं पर भी कृपा करें।वानर मुस्कुराकर बोला-महाराज कृपया आप चिंता न करें।यह महान जीवाणु महोदय न केवल हमारे शहर में अपितु एक साथ संपूर्ण पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे हैं।आपको इनकी शक्ति और महानता को समझ लेना चाहिए,क्योंकि वे एक साथ अपने सहस्त्र रूपों में अनेक स्थानों पर हमारे उद्धार के लिए उपस्थित हैं।
आपको यह भी ज्ञात होना चाहिए कि यह महान जीवाणु हमारे शहर में ही नहीं इस धरती पर प्रत्येक शहर,गांव,मोहल्ले,कॉलोनी आदि में उद्दंड मानव को सबक सिखा रहा है।यह सुनकर पूरे वन में उत्सव का वातावरण हो गया।अपने सभाजनों से मंत्रणा कर राजा शेर ने घोषणा की कि कल वन में उत्सव मनाया जाएगा और उत्सव के उपरांत सभी यहां से शहर की ओर प्रस्थान कर अपनी-अपनी जन्म जन्म भूमि की ओर अनेक उपहारों के साथ निकलेंगे।प्रत्येक शहर-गांव से गुजरते हुए महान जीवाणु को सब उपहार प्रदान कर धन्यवाद कहेंगे।यह सुनकर सभी वन्य प्राणियों ने तैयारी कर वन में उत्सव मनाया यह उत्सव ठीक वैसा ही उत्सव था जैसा मानव ने 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर मनाया था।